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ए॒ष ते॑ देव नेता॒ रथ॒स्पतिः॒ शं र॒यिः। शं रा॒ये शं स्व॒स्तय॑ इषः॒स्तुतो॑ मनामहे देव॒स्तुतो॑ मनामहे ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

eṣa te deva netā rathaspatiḥ śaṁ rayiḥ | śaṁ rāye śaṁ svastaya iṣaḥstuto manāmahe devastuto manāmahe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒षः। ते॒। दे॒व॒। ने॒त॒रिति॑। रथः॒पतिः॑। शम्। र॒यिः। शम्। रा॒ये। शम्। स्व॒स्तये॑। इ॒षः॒ऽस्तुतः॑। म॒ना॒म॒हे॒। दे॒व॒ऽस्तुतः॑। म॒ना॒म॒हे॒ ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:50» मन्त्र:5 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:4» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को क्या माँगना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (नेतः) प्राप्ति करानेवाले (देव) विद्वन् ! (ते) आपका (एषः) यह (रथस्पतिः) वाहन का स्वामी (शम्) सुखरूप (रयिः) धन और (शम्) सुख (राये) धन के लिये वा (स्वस्तये) सुख के लिये (शम्) कल्याण (इषःस्तुतः) अन्न आदि की स्तुति करनेवाला और जो (देवस्तुतः) विद्वानों से प्रशंसित है, उनकी हम लोग (मनामहे) याचना करते हैं और हम लोग (मनामहे) जानते हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वानों में प्रशंसित और कल्याणकारक पदार्थ होवें उनको हम लोग ग्रहण करें ॥५॥ इस सूक्त में विद्वानों के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह पचासवाँ सूक्त और चतुर्थ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैः कि याचनीयमित्याह ॥

अन्वय:

हे नेतर्देव ! त एषो रथस्पतिः शं रयिः शं राये स्वस्तये शमिषः स्तुतः देवस्तुतोऽस्ति तान् वयं मनामहे तान् वयं मनामहे ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एषः) (ते) तव (देव) विद्वन् (नेतः) प्रापक (रथस्पतिः) रथस्य स्वामी (शम्) सुखरूपम् (रयिः) धनम् (शम्) (राये) धनाय (शम्) कल्याणम् (स्वस्तये) सुखाय (इषःस्तुतः) अन्नादेः स्तावकः (मनामहे) याचामहे (देवस्तुतः) देवैर्विद्वद्भिः प्रशंसितः (मनामहे) विजानीमः ॥५॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वत्प्रशंसिताः कल्याणकराः पदार्थाः स्युस्तान् वयं गृह्णीयाम ॥५॥ अत्र विद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति पञ्चाशत्तमं सूक्तं चतुर्थो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वानांमध्ये प्रशंसित व कल्याणकारक पदार्थ असतात ते आम्ही स्वीकारावे. ॥ ५ ॥